VARN PRAKRAN

 वर्ण प्रकरण



व्याकरणः- ‘व्याकरण’ एक शास्त्र है जो हमें वर्ण, शब्द, और वाक्य के उच्चारण, प्रकृति, बनाबट एवं सही-सही प्रयोग करने का ज्ञान देता है। अर्थात्- व्याकरण हमें शुद्ध-शुद्ध बोलना, लिखना और पढ़ना सिखाता है।

-व्याकरण के तीन भेद है।

1. वर्ण विचार

2. शब्द विचार

3. वाक्य विचार

वर्ण विचार

वर्णः- उच्चारण के मूल ध्वनि को वर्ण कहा जाता है। जिसका और भी खंड नहीं संभव है।

-वर्ण, भाषा की सबसे छोटी इकाई है।

 जैसे- 

क=क्+            ह=ह्+

य=इ+              च=च्+

-यहाँ क, , , एवं य वर्ण नहीं है। ये सभी अक्षर कहलाते हैं। एवं क्, च्, ह्, तथा य् ये सभी वर्ण कहलाते हैं।

-व्यहवारिक तौर पर वर्ण और अक्षर में कोई विभेद नहीं किया जाता है।

-वर्ण को दो वर्गों में बाँटा गया है।

स्वर वर्ण

व्यंजन वर्ण

स्वर वर्ण

स्वर वर्णः- जिस वर्ण का उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण से हो वह स्वर वर्ण कहलाता है।

-संस्कृत में इसकी संख्या 13 है।

, , , , , , , ऋृ, , , , , लृ।

-हिंदी में इसकी संख्या 11 है।

, , , , , , , , , , ,

-स्वर वर्ण तीन प्रकार के होते हैं।

ह्रस्व स्वर

दीर्ध स्वर

प्लुत स्वर

ह्रस्व स्वरः- जिस वर्ण के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है। वह ह्रस्व स्वर कहलाता है।

-इसकी संख्या संस्कृत में 5 है।

, , , , लृ।

-इसकी संख्या हिन्दी में 4 है।

, , , ऋ।

दीर्ध स्वरः-जिस स्वर वर्ण के उच्चारण में 2 मात्रा का समय लगता है। वह दीर्ध स्वर कहलाता है।

-इसकी संख्या संस्कृत में 8 है।

, , , ऋृ, , , , औ।

-इसकी संख्या हिंदी में 7 है।

, , , , , , औ।

प्लुत स्वरः-जिस स्वर वर्ण के उच्चारण में 3 मात्रा का समय लगता है। वह प्लुत स्वर कहलाता है।

-यह अलग-अलग भाशाओं में अलग-अलग तरह के होतें हैं।

        जैसै-

अरे....! आह....! ओए....! इत्यादि।

व्यंजन वर्ण

व्यंजन वर्णः-जिस वर्ण का उच्चारण स्वर की सहायता से हो वह व्यंजन वर्ण कहलाता है।

-ये सभी वर्णों का उच्चारण स्वर की सहयता से होता है।

क्, ख्, ग्, घ्, ङ्

च्, छ्, ज्, झ्, ञ्

ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्

त्, थ्, द्, ध्, न्

प्, फ्, ब्, भ्, म्

य्, र्, ल्, व्, ष्, श्, स्, ह्

-इसकी संख्या संस्कृत एवं हिन्दी में ‘28’ समान है।

-व्यंजन वर्ण को कूल तीन प्रकार से बाँटा गया है।

प्रयोग के आधार पर

स्पर्श वर्ण

अन्तःस्थ वर्ण

उष्ण वर्ण

उच्चारण के समय प्राणवायु के प्रयोग के आधार पर-

अल्प प्राण

महाप्राण

उत्तपत्ति के आधार पर

घोष वर्ण

अघोष वर्ण

-परंतु मुख्यतः सामान्य रूप से 3 प्रकार से बाँटा गया है।

स्पर्श वर्ण

अन्तःस्थ वर्ण

उष्ण वर्ण

वर्ण मात्रिक होते है-

एकमात्रिक भवेत् ह्रस्वः द्विमात्रो दीर्ध उच्चते।

त्रिमात्रष्च प्लुतो ज्ञेयो व्यंजनं चार्धमात्रकम्।।

-अर्थात्

ह्रस्व स्वर एक मात्रिक होते है, दीर्ध स्वर द्विमात्रिक होते हैं, प्लुत

स्वर त्रिमात्रिक होता है और व्यंजन चार्ध मात्रिक होता हैं।

प्रयोग के आधार पर वर्णों के भेद-

1.स्पर्श वर्णः- क-वर्ग से प-वर्ग तक के सभी वर्ण स्पर्श वर्ण कहलाते हैं।

-इसकी संख्या 25 है।

-इस वर्ण के उच्चारण में मुँह का दो अंग एक-दसरे से स्पर्श करते हैं। इसलिए इसे स्पर्श वर्ण कहा जाता है।

2.अन्तःस्थ वर्णः- , , , एवं व को अन्तःस्थ वर्ण कहा जाता है।

3.उष्ण वर्णः-श, , , एवं ह को उश्ण वर्ण कहा जाता है।

क्, ख्, ग्, घ्, ङ्

च्, छ्, ज्, झ्, ञ्

ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्

त्, थ्, द्, ध्, न्

प्, फ्, ब्, भ्, म्

य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह्

उच्चारण के समय प्राणवायु के प्रयोग के आधार पर-

1. अल्प प्राण

2. महा प्राण

1. अल्प प्राणः- प्रत्येक वर्ग का प्रथम, तृतीय तथा पंचम वर्ण एवं अन्तःस्थ वर्ण को अल्प प्राण कहा जाता है।

2. महा प्राणः- प्रत्येक वर्ग का द्वितीय, चतुर्थ एवं उश्ण वर्ण को महा प्राण कहा जाता है।

  जैसै-

क्, ख्, ग्, घ्, ङ्

च्, छ्, ज्, झ्, ञ्

ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्

त्, थ्, द्, ध्, न्

प्, फ्, ब्, भ्, म्

य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह्

-अल्प प्राण के उच्चारण में प्राणवायु का कम प्रयोग होता है एवं महा प्राण के उच्चारण में प्राणवायु का

ज्यादा प्रयोग होता है।

उत्तपत्ति के आधार पर-

1. घोष वर्ण

2. अघोष वर्ण

घोष वर्णः- प्रत्येक वर्ग का तृतीय, चतुर्थ, पंचम वर्ण तथा य्, र्, ल्, व् और ह् को घोष वर्ण कहा जाता है।

ग्, घ्, ङ्

ज्, झ्, ञ्

ड्, ढ्, ण्

द्, ध्, न्

ब्, भ्, म्

य्, र्, ल्, व्, ह्

 

अघोष वर्णः- प्रत्येक वर्ग का प्रथम वर्ण, द्वितीय वर्ण एवं श्, ष्, तथा स् को अघोष वर्ण कहा जाता है।

क्, ख्,

च्, छ्,

ट्, ठ्,

त्, थ्,

प्, फ्,

श्, ष्, स्,

जिह्वामूलीयः- क और ख के पूर्व जब अर्धविसर्ग का प्रयोग होता है तब वह जिह्वामूलीय कहा जाता है।

उपध्मानीयः- प और फ के पूर्व जब अर्धविसर्ग का प्रयोग होता है त बवह उपध्मानीय कहालाता है।

वर्णों का उच्चारण स्थान

उच्चारण स्थानः-किसी भी वर्ण का उच्चारण स्थान में प्राणवायु मुँह के जिस अंग से टकराकर बाहर निकलता है वही उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहा जाता है।

-अंग के नाम

कंठ, तालु, मूर्धा, दाँत एवं ओठ ये सभी उच्चारण स्थान हैं।

1. कण्ठय्ः-, , क-वर्ग, ह और विसर्ग का उच्चारण कण्ठ से होता है इसलिए इन सभी वर्णों को कण्ठय् कहा जाता है। (अकुहविसर्जनीयानां)

2. तालव्यः-, , चवर्ग, , और श का उच्चारण तालु से होता है इसलिए इन सभी वर्णों को तालव्य कहा जाता है। (इचुयशानां)

3. मूर्धन्यः- , ऋृ, टवर्ग, र और ष का उच्चारण मूर्धा से होता है। इसलिए इन सभी वर्णों को मूर्धन्य कहा जाता है।(ऋटुरषानां)

4. दन्तयः- लृ, तवर्ग, ल और स का उच्चारण दाँत से होता है। इसलिए इन सभी वर्णों को दन्तय कहा जाता है।(लृतुलसानां)

5. ओष्ठयः-, , पवर्ग और उपध्मानीय का उच्चारण ओठ से होता है। इसलिए इन सभी वर्णों को ओष्ठय जाता है।(उपुपध्मानीयमोंष्ठौ)

6. नासिक्यः-, , , , और न का उच्चारण नासिका से होता है। इसलिए इन सभी वर्णों को अनुनासिक वर्ण कहा जाता है।(ञमपुणनानां)

7. कण्ठतालव्यः- , , का उच्चारण कण्ठ ओर तालु दोनों से मिलकर होता है। इसलिए इसे कण्ठतालव्य कहा जाता है।(एदैतोःकण्ठतालु)

8. कण्ठओष्ठयः- , , का उच्चारण कण्ठ ओर ओठ दोनों से मिलकर होता है।(ओदौतोःकण्ठोष्ठम्)

9. दन्तोष्ठयः- व का उच्चारण दाँत ओर ओठ दोनों से मिलकर होता है। इसलिए इसे दन्तोष्ठय कहा जाता है।

10. अनुनासिक्यः- अनुस्वार का उच्चारण नासिका से होता है। इसलिए इसे अनुनासिक्य कहा जाता है।

 

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