समास प्रकरण

समास प्रकरण

समासः- दो या दो से अधिक पदों के मिलने से एक नया पद बनना समास कहलाता है। अर्थात् आपस में दो पद को मिलने कि क्रिया को समास कहा जाता है। कि बने नये शब्द को। इस प्रक्रिया में प्रथम पद के विभक्ति का प्रायः लोप हो जाता है।

  जैसे-

            उपकृष्णम्, निर्धन, बुद्धिहीन, राजपुत्र, अनागत इत्यादि।

विग्रहः- समास के द्वारा बने नये शब्द को पुनः मुल रूप में लाना विग्रह कहलाता है।

  जैसे-

उपकृष्णम्-कृष्णस्य समीपम्।

राधाकृष्णौ-राधा कृष्णश्च। इत्यादि।

-समास के मुख्यतः चार भेद हैं।

1. अव्ययीभाव
2. तत्पुरुष
3. बहुब्रीहि
4. द्वन्द्व

-परंतु इसके अलावा भी समास के दो भेद हैं। ये दोनों तत्पुरुष समास के उपभेद हैं इस प्रकार समास के कुल छः भेद हैं।

5. कर्मधारय
6. द्विगु

अव्ययीभाव समास

अव्ययीभाव समासः- जिस समास का प्रथम पद प्रधान हो या जिस समास का प्रथम पद कोई अव्यय हो वह अव्ययीभाव समास कहलाता है।

  जैसे-

उपनगनम्, निर्जनम्, अतिकष्टम्, यथाशक्तिः, प्रत्येकम्, प्रतिगृहम् इत्यादि।

-अव्ययीभाव समास के गुणः-

  1. अव्ययीभाव समास का प्रथम पद कोई अव्यय एवं द्वितीय पद कोई संज्ञा होता है।
  2. समास होने पर सम्पूर्ण पद नपुंसकलिंग एकवचन में होता है।
  3. अव्ययीभाव समास में प्रथम पद की प्रधानता होती है।

-पहचानने का नियमः-

  • प्रथम पद कोई अव्यय होता है।
  • प्रथम पद से नकारात्मक भाव स्पष्ट नहीं होना चाहिए।

     जैसे-

उप (निकट), अधि (में), सु (योग्य), कु (अयोग्य), दुर् (नाश), निर् (अभाव या क्षीन), अति (अधिक), इति (प्रकट होना), अनु (पीछे या क्रम से), प्रति (प्रत्येक), यथा (अनुसार), (साथ) इत्यादि। ये सभी अव्यय है जो अव्ययीभाव समास में मुख्य रूप से प्रयोग होता है।

-समास करने के नियमः-

  • यदि पूर्व पद दीर्ध स्वरान्त हो तो उसे हृस्व स्वरान्त कर देना चाहिए।
  • अन् से अन्त होने वाले शब्द से नकार् निकाल देना चाहिए।
  • यदि अन्त में या हो तो उसे’ (  ) में बदल देना चाहिए।
  • हलन्त को अकारान्त बना देना चाहिए।

  जैसे-

उपनदि, उपराजम्, उपनु, उपसरितम् इत्यादि।

तत्पुरुष समास

तत्पुरुष समासः- जिस समास का उत्तर पद प्रधान हो वह तत्पुरुष समास कहलाता है।

  जैसे-

राजपुत्रः, कृष्णाश्रितः, दुःखातीतः, ग्रामप्राप्तः, मासपूर्वः इत्यादि।

-तत्पुरुष समास के निम्नलिखित नियम हैंः-

1. द्वितीया तत्पुरुष
2. तृतीया तत्पुरुष
3. चतुर्थी तत्पुरुष
4. पंचमी तत्पुरुष
5. षष्ठी तत्पुरुष
6. सप्तमी तत्पुरुष

1. द्वितीया तत्पुरुषः- जिस तत्पुरुष समास का प्रथम पद द्वितीया विभक्ति में हो वह द्वितीया तत्पुरुष समास कहलाता है।

  जैसे-

ग्रामम् गमी=ग्रामगमी (गाँव को पहुचां हुआ)
धनम् आपन्नः=धनापन्नः (धन को प्राप्त)

2. तृतीया तत्पुरुषः- जिस तत्पुरुष समास का प्रथम पद तृतीया विभक्ति में हो वह तृतीया तत्पुरुष समास कहलाता है।

  जैसे-

मासेन पूर्व=मासपूर्व

पित्रा समः=पितृसमः इत्यादि।

3. चतुर्थी तत्पुरुषः- जिस तत्पुरुष समास का प्रथम पद चतुर्थी विभक्ति में हो वह चतुर्थी तत्पुरुष समास

कहलाता है।

  जैसे-

भूताय बलि=भूतबलि
गवे हितम्=गोहितम् इत्यादि।

4. पंचमी तत्पुरुषः- जिस तत्पुरुष समास का प्रथम पद पंचमी विभक्ति में हो वह पंचमी तत्पुरुष समास

कहलाता है।

  जैसे-

व्याघ्रात् भयम्=व्याघ्रभयम्
चोरात् भयम्=चौराभयम् इत्यादि।

5. षष्ठी तत्पुरुषःजिस तत्पुरुष समास का प्रथम पद षष्ठी विभक्ति में हो वह षष्ठी तत्पुरुष समास कहलाता है।

  जैसे-

राज्ञः पुत्र=राजपुत्रः

ब्राह्मणस्य कृत्वा=ब्राह्मणकृत्वा इत्यादि।

6. सप्तमी तत्पुरुषः- जिस तत्पुरुष समास का प्रथम पद सप्तमी विभक्ति में हो वह सप्तमी तत्पुरुष समास कहलाता है।

  जैसे-

शास्त्रे प्रवीणः=शास्त्रप्रवीणः

चक्रे बन्धः=चक्रबन्धः इत्यादि।

 

-तत्पुरुष समास के गुणः-

तत्पुरुष समास में द्वितीय पद की प्रधानता होती है।

तत्पुरुष समास का प्रथम पद सुप् प्रत्ययान्त होता है जो समास होने पर लुप्त हो जाता है।

-तत्पुरुष समास को पहचानने का नियमः-

समास का अर्थ निकालने पर कारक चिन्ह ज्ञात होता है।

-बनाने का नियमः-

प्रथम पद में से सुप् प्रत्यय को हटाकर समास कर देना चाहिए।

-तत्पुरुष समास के आठ उपभेद हैः-

1.  उपपद्
2.  नञ्
3.  प्रादि
4.  अलुक्
5.  मयूरव्यंसकादि
6.  मध्यमपदलोपी
7.  कर्मधारय
8.  द्विगु

1. उपपद् तत्पुरुष समासःकृत प्रत्यय युक्त पद के पूर्व जो पद होता है वह उपपद कहलाता है।

  जैसे-

चर्मम् करोति=चर्मकारः

कुम्भम् करोति=कुम्भकारः इत्यादि।

नञ् समास

2. नञ् समासःजिस तत्पुरूश समास का प्रथम पद नकारात्मक हो और समासिक पद उत्तर का उल्टा हो तो वह नञ् समास कहलाता है।

  जैसे-

अयोग्य, अनाथ, अधर्म, अस्वस्थ इत्यादि।

3. प्रादि तत्पुरुष समासःप्र आदि तत्पुरूश के साथ जब सुबन्त पद का जब मेल होता है तब वह प्रादि

तत्पुरुष कहलाता है।

  जैसे-

प्रगतः आचार्य=प्राचार्य

दुष्टम् कुलम्=दुष्कुलम् इत्यादि।

4. अलुक् तत्पुरुष समासः- जिस तत्पुरुष समास के बिच का विभक्ति का लोप नहीं होता है तो वह अलुक् तत्पुरुष समास कहलाता है।

  जैसे-

युधि स्थिरः=युधिष्ठरः
सरसि जायते=सरसिजः

कर्णे जपः=कर्णेजपः इत्यादि।

5. मयूरव्यंसकादि तत्पुरुष समासःजिस तत्पुरुष समास में समास का कोई नियम लागू नहीं होता है तो वह मयूरव्यंसकादि समास कहलाता है।

  जैसे-

अन्यः देशः=देशान्तरः

तस्मिन् एव=तत्परः इत्यादि।

6. मध्यमपदलोपी तत्पुरुष समासःजिस तत्पुरुष समास का मध्यम पद का लोप हो जाता है वह मध्यमपदलोपी समास कहलाता है।

  जैसे-

सुवर्णनिर्मितम् कङ्णम्=सुवर्णकङ्णम्

स्वर्णनिर्मितम् कुण्डलम्=स्वर्णकुण्डलम् इत्यादि।

कर्मधारय समास

कर्मधारय समासः- जिस समास में विशेषण और विशेष्य का समास हो या कर्मों का निर्धारण करता हो या किसी की विशेषता को बतता हो वह कर्मधारय समास कहलाता है।

  जैसे-

महापुरूष, महाआत्मा, मधुरवचनम्, नीलकमलम् सुन्दरनारी इत्यादि।

-कर्मधारय समास के भेद हैं।

1. उपमान कर्मधारय
2. उपमित कर्मधारय

3. रूपक कर्मधारय

1. उपमान कर्मधारयः- जब उपमान और साधारण धर्मवाचक वाक्य का समास होता है तो वह उपमान कर्मधारय समास कहलाता है।

  जैसे-

घन इव श्याम=घनश्याम इत्यादि।

2. उपमित कर्मधारयःउपमान और उपमेय का जब समास होता है तो वह उपमित समास कहलाता है।

  जैसे-

मुखम् कमलम् इव=मुखकमलम्

पुरुष व्याघ्रः इव=पुरुषव्याघ्रः इत्यादि।

3. रूपक कर्मधारयःयदि उपमान और उपमेय में अभेद स्थापित करते हुए समास होता है तो वह रूपक समास कहलाता है।

  जैसे-

शोकः एव सागरः=शोकसागरः इत्यादि।

-कर्मधारय समास के गुणः-

  1. कर्मधारय समास का द्वितीय पद प्रधान होता है।
  2. कर्मधारय समास द्वितीय पद के का विशेषता बताता है।
  3. कर्मधारय समास का द्वितीय पद कोई संज्ञा होता है।

द्विगु समास

द्विगु समासः- जिस तत्पुरुष समास का प्रथम पद संख्यावाचक शब्द हो वह द्विगु समास कहलाता है।

  जैसे-

पंचतंत्रम्, चतुर्युगम्, त्रिशुल, पंचामृत इत्यादि।

-द्विगु समास के गुणः-

  1. द्विगु समास का द्वितीय पद प्रधान होता है।
  2. द्विगु समास का प्रथम पद संख्यावाचक शब्द होता है।

बहुव्रीहि समास

बहुव्रीहि समासः- जिस समास में किसी अन्य पद की प्रधानता होती है वह बहुव्रीहि समास कहलाता है। अर्थात् यदि दो पद के समास होने से बना नया पद किसी अन्य संज्ञा का अर्थ निकालता हो तो वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।

  जैसे-

चन्द्रः शेखरे यस्य सः=चन्द्रशेखरः

लम्बम् उदरम् यस्य सः=लम्बोदरः इत्यादि।

-बहुव्रीहि समास के चार भेद हैंः-

1. समानाधिकरण
2. व्यधिकरण
3. तुल्ययोग
4. व्यतिहार

-बहुव्रीहि समास के गुणः-

इस समास में अन्य पद की प्रधानता होता है।

समासिक शब्द का अर्थ प्रथम पद एवं अंतिम पद से बिल्कुल भिन्न होता है।

द्वन्द्व समास

द्वन्द्व समासः- जिस समास का दोनों पद प्रधान हो वह द्वन्द्व समास कहलाता है। अर्थात् द्वन्द्व समास का दोनों पद समान होता है परंतु भिन्न प्रकृति का होता है।

  जैसे-

गौरीशंकरौ, राधाकृष्णौ, सितारामौ, मातापुत्रौ, पितापुत्रौ इत्यादि।

-द्वन्द्व समास के तीन भेद है।

1. इतरेतर द्वन्द्व
2. समाहार द्वन्द्व
3. एकशंष द्वन्द्व

-द्वन्द्व समास के गुणः-

  1. इस समास का दोनों पद प्रधान होता है।
  2. दोनों पद के बीच कोई गहरा संबंध होता है।
  3. दोनों पद में कुछ भिन्नता होता है।

 

 

 

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